शनिवार, 23 जनवरी 2010

खजुराहो में मैथुन मूर्तियाँ

मोह पाश में बांधती कला
मंदिरों का नगर खजुराहो पर्यटकों का तीर्थ जिज्ञासुओं का रहस्य प्रकेअती की गोद में मानव की उत्कृष्ट कृति जहाँ कला अपने सम्पूर्ण रूपों में अवतरित हुयी है और मूर्ती कला की जरीदारी ने उस छोटे से गाँव को जो चंदेल शासन में जेजाक भुक्ति की आध्यात्मिक राजधानी कहा जाता था दुनिया में उत्कृष्ट आकर्षण का केंद्र बना दिया । खजुराहो के मंदिरों पर अंकित मैथुन मूर्तियाँ दुनिया के आखिरी कोने से भी पर्यटकों को अपने पास खींच कर लाने का माद्दा रखतीं हैं । मानव का जिज्ञासु मन हमेशा रोमांच , सन्देश और ज्ञान की खोज में भटकता रहता है । एक सहज स्वाभाविक प्रश्न उठता है किधार्मिक स्थलों पर इस तरह कि मूर्तियों का क्या औचित्य है ? और ये किस प्रेरणा से प्रोत्साहित कि गयीं ?लोक मान्यताएं बतलाती हैं कि खजुराहो के मंदिरों को आकाशीय बिजली से बचाने के लिए मैथुन मूर्तियाँ मंदिरों कि बाह्य दीवारों पर अंकित की गयी हैंक्योंकि ऐसी मान्यता है की आकाशीय बिजली एक कुंवारी देवी है जो लज्जा वश ऐसे स्थानों पर नहीं आ सकती जहाँ मैथुन प्रसंग प्रसिद्द हों । एक अन्य लोक मान्यतानुसार इन मूर्ती चित्रणों को देवराज इंद्र के साथ भी जोडती है । कहा जाता है की देवताओं के राजा इंद्र एक रसिक प्रवृत्ति के देवता हैं और मैथुन उनका प्रिय विषय है तथा ये चित्र देवराज को मन्त्र मुग्ध करने के लिए है ताकि आकाशीय बिजली जो उनके बज्र का ही प्रहार है का प्रकोप न होने पाए । एक अन्य मान्यता संकेत करती है की शिल्पकारों द्वारा मंदिरों को बुरी नजर से बचाने के लिए दिठोना स्वरुप इन मूर्तियों का चित्रण किया गया है । कारण कुछ भी हो लेकिन यह सत्य है की ये मूर्तियाँ मंदिरों की सुन्दरता में चार चाँद लगाती है। जन श्रुतियों एवं जन मान्यताओं के साथ विद्द्वानो ने भी मंदिरों पर मैथुन मूर्तियों की उपस्थिति पर अपनी टिप्पणियां दी है । कतिपय विद्द्वानो के अनुसार तत्कालीन समाज में नैतिक मूल्यों के प्रति उदासीनता एवं चरित्र हीनता ही इस प्रकार से मुखरित हुयी है । कुछ विद्द्वानो ने इसे वात्सायन के काम शाश्त्र की ब्याख्या के रूप में प्रस्तुत किया है ।